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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जीवन का यथार्थ

जीवन का यथार्थ

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कल्पना है या जीवन का यथार्थ

 निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता,

जहां होना जीवन की सफलता है और

शांति का रास्ता भी वही हैं

समस्त बाधाओं को फलांग कर

 यकीनन एक अदृश्य शक्ति ने

अपनी नजर के पलक पर बिठा कर

उतार दिया लाकर यहां

जंग की विभीषिका से दूर।

एक और दिलचस्प वाकए से रूबरू हैं

एक और दोस्त मिलना संभव है

जिसके सहयोग से यह सब आलोकित हो सकता है

 यह सब यानी

 कल्पना से यथार्थ तक जहां हैं।

पर बाधाएं यहां भी हैं

 दोस्त की नहीं दुनिया की।

 ना के रूप में नहीं

कानून के रूप में

या शायद उसकी अनभिज्ञता के रूप में।


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