Amar Singh
Tragedy
जब हम झूठ के साथ थे।
सभी अपने थे, सभी खास थे।
जैसे ही थमा सच का हाथ,
गैर तो गैर ठहरे ,मेरे अपने भी न साथ थे।
जीवन का सच
प्रेम
इश्क़
मन
जीवन मंत्र
चेहरा तुम्हार...
जीवन
कायर
इश्क़ का जादू
मानव
जो कर्म की रेखा हाथ पर उभर रही है तकदीर का लेखा जोखा लिख रही है जो कर्म की रेखा हाथ पर उभर रही है तकदीर का लेखा जोखा लिख रही है
घटती उम्र और अधूरा ख्वाब न कम हुआ है और न ही पूरा। घटती उम्र और अधूरा ख्वाब न कम हुआ है और न ही पूरा।
कट रही रातें गिनकर तारे तेरे बिन। अगोरता रहता आँगन मै तेरे बिन। कट रही रातें गिनकर तारे तेरे बिन। अगोरता रहता आँगन मै तेरे बिन।
यह इश्क है ज़नाब यह मुक्कमल हो जाये तो इश्क कहाँ रह जाता है। यह इश्क है ज़नाब यह मुक्कमल हो जाये तो इश्क कहाँ रह जाता है।
ना एक दूसरे के भावों का प्रतिकार करते हैं अपनी-अपनी स्वतंत्रता...स्वीकार करते हैं ! ना एक दूसरे के भावों का प्रतिकार करते हैं अपनी-अपनी स्वतंत्रता...स्वीकार करते...
अपने साथ लड़ रहे इंसान को मकसद से, स्वतंत्र कर जाती हैं....... जब मौत आती है। अपने साथ लड़ रहे इंसान को मकसद से, स्वतंत्र कर जाती हैं....... जब मौत आती है।
फ़िज़ूल होता चला जो तेरा हैं, हार्दिक वही तो ख़ौफ़ हुआ हैं। फ़िज़ूल होता चला जो तेरा हैं, हार्दिक वही तो ख़ौफ़ हुआ हैं।
वह बड़ा मूर्ख जो इसे स्वयं की ज़िद पर केवल जीता है ! वह बड़ा मूर्ख जो इसे स्वयं की ज़िद पर केवल जीता है !
चाह कर भी औरों की पीर हर न सकूं पोंछ सकूं आंसू-न अपनों के न गैरों के। चाह कर भी औरों की पीर हर न सकूं पोंछ सकूं आंसू-न अपनों के न गैरों के।
जिनकी होती, सही सोच वो झूठ के उड़ाते है, होश वो सत्य की जलाते जोत जो सत्य दीप जलाते र जिनकी होती, सही सोच वो झूठ के उड़ाते है, होश वो सत्य की जलाते जोत जो सत्...
तकदीर से मिले न मिले मेहनत का कोई पर्याय नहीं। तकदीर से मिले न मिले मेहनत का कोई पर्याय नहीं।
बड़े बलिदानों से मिली हमें यह आज़ादी देखो यारों , व्यर्थ ना हो जाए यह आज़ादी! बड़े बलिदानों से मिली हमें यह आज़ादी देखो यारों , व्यर्थ ना हो जाए यह आज़ादी!
हमे अनदेखा करके , चली जा रही हो , क्या पता तुम्हे। हमे अनदेखा करके , चली जा रही हो , क्या पता तुम्हे।
जिधर देखो उधर दिखते हैं, कटे हुए हाथ कहीं दवा की कालाबाज़ारी करते हुए। जिधर देखो उधर दिखते हैं, कटे हुए हाथ कहीं दवा की कालाबाज़ारी करते हुए।
एक ऐसी रक्तरंजित शादी क्या यही है आजादी ? एक ऐसी रक्तरंजित शादी क्या यही है आजादी ?
खंडहरों की चाहते नहीं हसरतें होती हैं। खंडहरों की चाहते नहीं हसरतें होती हैं।
क्या क्या दिन देखने पड़ रहे हैं जेल मंत्री तिहाड़ जेल में सड़ रहे हैं । क्या क्या दिन देखने पड़ रहे हैं जेल मंत्री तिहाड़ जेल में सड़ रहे हैं ।
यह उस दिन मुझे पता चला, उनका था यही बिजनेस, उड़ाती थी पीज़ा बर्गर ! यह उस दिन मुझे पता चला, उनका था यही बिजनेस, उड़ाती थी पीज़ा बर्गर !
सभ्यता की चिता जलाती, कैसी है ये आजादी। सभ्यता की चिता जलाती, कैसी है ये आजादी।
हर दफ़ा ये ख़्वाब सच होते होते रह जाते हैं और दे जाते हैं उम्र भर की कसक। हर दफ़ा ये ख़्वाब सच होते होते रह जाते हैं और दे जाते हैं उम्र भर की कसक।