प्रेम
प्रेम
मूक होकर भी बहुत कुछ बोलता है।
बिन कहे ही भेद सारे खोलता है।
नेत्रों में स्वप्निल सवेरा,
प्रेम सभी के घोलता है।
मूक होकर भी बहुत कुछ बोलता है।
बिन कहे ही भेद सारे खोलता है।
नेत्रों में स्वप्निल सवेरा,
प्रेम सभी के घोलता है।