जीवन दर्शन।
जीवन दर्शन।
ब्रह्म ज्ञान का असली मतलब, ब्रह्म स्वरूप हो जाना है।
सच्चिदानंद रूप ब्रह्मज्ञानी कहलाता, प्रभुमय सकल जमाना है।।
करुणा और दया के सागर कहलाते, अपार प्रेम सब पर बरसाते।
सरलता व दृढ़ता की प्रेम मूर्ति बनकर, सेवा- भाव को सिखलाते।।
लीन सदा प्रभु में ही रहते, गुरु चिंतन को हृदय से लगाते।
अंतर्मुखी वृत्तियां बन जाती, जो भी इनकी महिमा गाते।।
आध्यात्मिक ज्ञान सबको है लुटाते, पारमार्थिक जीवन सबका बनाते।
पात्र- कुपात्र का भेद मिटाकर, सब के सदा दुःख- दर्द मिटाते।।
कर्ता- भाव न आने देते, दृष्टा- भाव की साधना हैं बतलाते।
अध्यात्मिक उन्नति, "व्यवहार" है बदलता, अहंकार को दूर भगाते।।
निष्काम भाव से सेवा जो करते, मार्गदर्शन उसका हैं करते।
जीवन पवित्र उसका हो जाता, समर्पण- भाव जो हैं अपनाते।।
" समर्थ गुरु" को हृदय में बसाना, जीवन पवित्र तुम अपना बनाना।
" नीरज" कर ले गुरु का चिंतन, गुरु के चरणों में सर्वश्व लुटाना।।
