जीवन दाता।
जीवन दाता।


प्रभु जी कैसे मैं, तुम्हारे गुण गाऊँ।
मन भरा मलिन विकारों से, किस विधि अपना मुख दिखाऊँ।।
मोह -माया ने जकड़ा ऐसे, उसमें ही फँसता मैं जाऊँ।
काम, क्रोध कभी शांत ना होते, उनमें ही रमता मैं जाऊँ।। प्रभु जी........
सपने संजोये निशि- दिन बीते, व्यसनों में ही डूबा जाऊँ।
समय का कुछ भी मूल्य न समझा, तुमसे मिल मैं कैसे पाऊँ।। प्रभु जी....
कर्मों तले दबता ही जाता, कैसे बोझ अब मैं उठाऊँ।
बिन माँगे तुम देते सब कुछ, कैसे कर्ज अब मैं चुकाऊँ। प्रभु जी......
जीवन "अमूल्य" का मर्म ना जाना, कैसे व्यथा मैं तुमको सुनाऊँ।
तुम तो हो जीवन- दाता "नीरज" के, कुछ भी अब मैं लिख न पाऊँ।। प्रभु जी......