STORYMIRROR

Neeraj pal

Abstract

3  

Neeraj pal

Abstract

जीवन दाता।

जीवन दाता।

1 min
368


प्रभु जी कैसे मैं, तुम्हारे गुण गाऊँ। 

मन भरा मलिन विकारों से, किस विधि अपना मुख दिखाऊँ।।


 मोह -माया ने जकड़ा ऐसे, उसमें ही फँसता मैं जाऊँ।

 काम, क्रोध कभी शांत ना होते, उनमें ही रमता मैं जाऊँ।। प्रभु जी........


 सपने संजोये निशि- दिन बीते, व्यसनों में ही डूबा जाऊँ।

 समय का कुछ भी मूल्य न समझा, तुमसे मिल मैं कैसे पाऊँ।। प्रभु जी....


 कर्मों तले दबता ही जाता, कैसे बोझ अब मैं उठाऊँ।

 बिन माँगे तुम देते सब कुछ, कैसे कर्ज अब मैं चुकाऊँ। प्रभु जी......


 जीवन "अमूल्य" का मर्म ना जाना, कैसे व्यथा मैं तुमको सुनाऊँ।

 तुम तो हो जीवन- दाता "नीरज" के, कुछ भी अब मैं लिख न पाऊँ।। प्रभु जी......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract