जीने दो
जीने दो
मैं नन्ही गुड़िया प्यारी सी
पेड़ बनकर आई हूँ
सोच रहे क्या दोनों रूप में
जीवन की पर्यायी हूं
वृक्ष नष्ट करोगे
साँस कहाँ से पाओगे
कन्या भ्रूण मिटाओगे
जन्म कहाँ से ले पाओगे
जो ना रहें हम दोनों ही तो
जीवन ना होगा धरती पर
समय बचा है सोच लो फिर से
पछताओगे फिर गलती पर
हमे बचा लो क्रूरता से
ये गुहार लगाती हूं
मैं बेटी हूं बनूँगी जननी
हाँ मैं ही सृष्टि कहलाती हूं