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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract Others

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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जीना सीखो

जीना सीखो

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कभी आज में जीना सीखो।

कभी साज में जीना सीखो।।

तुम हो दिल में बसने वाले।

कभी नाज में जीना सीखो।।


हर तरफ से मिलती दुत्कारी।

खीर बनी जब भी सरकारी।

खाकर जो भी बैठे हैं अब।

वही गा रहे हैं अपनी लाचारी।

कभी लाज में जीना सीखो।


तुरप का इक्का बन बैठा कोई।

हजम कर गया मलाई सारी।

कोई तरस रहा है रोटी को।

किसी थाली में पनीर तरकारी।

कभी लाज में जीना सीखो।।


नाथ अवतरित हो इसी धरा पर।

फिर महका दो सृष्टि सारी।

नाश करो अब अत्याचार का।

भर दो इंसान में फिर खुद्दारी।

कभी साज में जीना सीखो।।


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