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Surendra kumar singh

Classics

4  

Surendra kumar singh

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जिद थी

जिद थी

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एक जिद थी तुम्हें महसूस करने की सुना था

तुम हो तो सही पर दिखते नहीं हो

दिखते भी हो तो बन्द आंखों से।


यकीन था जो भी सुना था और

जिद थी तुम्हें महसूस करने की।

अब जब महसूस हो रहे हो तुम

जीवन के हर क्षण में तो जिद


और महसूस होने के समयांतराल में

घटी हुयी अनगिन कहानियां याद आ रही हैं

और तुम्हें महसूस करते हुये जब भी

किसी कहानी को कविता में ढालना चाहता हूँ।


कुछ और नयी कहानियां सामने आ जाती हैं

और मैं अतीत से निकलकर वर्तमान में चला

आता हूँ मुझे नहीं लगता अतीत वर्तमान से दिलचस्प था।


अब बात चमत्कार की आती है मुझे तो

नहीं लगता जीवन के होने से

बड़ा कोई चमत्कार है अस्तित्व में।


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