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J P Raghuwanshi

Tragedy

3  

J P Raghuwanshi

Tragedy

"झूठा सुख"

"झूठा सुख"

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मृगतृष्णा में फंसकर मानव,

ऐसा भटक रहा।

छोड़ गांव का कूप पुराना,

आरो का पानी गटक रहा।


छोड़ सुहानी साड़ी बहनें,

गाउन पहन रही।

खीर महेरी सत्तू भूली,

चाऊमीन को बिरज रही।


घण्टा झालर कीर्तन करने,

लोग नहीं मिलते।

दारू, गांजे लेने को,

लाइन में लगते।।


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