झील सी आँखें
झील सी आँखें
खबर है हमें, कि डूबे जा रहे हैं
तुम्हारी झील सी गहरी आँखों में।
पर क्या करें कि मन
करता नही उबरने को।
नादान है ये दिल,
समझता है जिंदगी
टूट कर बिखरने को
क्या करें कि मन
करता नहीं उबरने को।
अब है तुम्हारी मर्जी दो
मुहब्बत या कि नफरत
हम तो हैं मजबूर
सभी कुछ सहने को।
हमने खुद ही तो उतार दी
जिंदगी कश्ती तुम्हारी
आँखों के सागर में तैरने को।
क्या करें कि मन करता
नहीं उबरने को।
नादान है ये दिल,
समझता है जिंदगी
टूट कर बिखरने को।
क्या करें कि मन करता
नहीं उबरने को।
दिल्लगी में क्या मजा है,
दिल लगा कर देख लो।
क्या तड़प है इश्क में,
आशिकी कर देख लो।
तुम जियोगे इश्क में,
तुम भी मरोगे इश्क में।
कैसा सुहाना है शमाँ
दिल में उतर कर देख लो।
समझ जाओगे तुम भी,
क्यूँ कहते जिंदगी
इश्क में किसी पे मरने को।
क्या करें कि मन
करता नहीं उबरने को।
नादान है ये दिल,
समझता है जिंदगी
टूट कर बिखरने को।
क्या करें कि मन करता
नहीं उबरने को।