झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
1 रानी लक्ष्मी बाई का जीवन
खंड खंड में बांटा मुल्क
आपस में लड़ते भिड़ते लोग
तड़फ रही थी माँ भारती
जन जन का मन व्यथित
निराशा चहूँ ओर।।
विश्वास में घुट घुट जीते
गुलामी का दर्द दंश वियोग।।
साम्राज्य विस्तार के भूखे अंग्रेज
भाग्य भगवान को कोसता पल
प्रहर भारत आएगा कोई वीर
गुलामी की बेड़ी को देगा भेद।।
उन्नीस नवम्बर अठारह सौ अट्ठाईस
को काशी की पावन भूमि बनी गवाह
नारी गौरव गाथा लिखने वाली
मणिकर्णिक भरत की पवन भूमि पे
रखा कदम।।
पिता मोरोपंत माँ भागीरथी सापरे का
सौभाग्य संयोग।।
तेजस्वी भारत की
धन्य धरोहर तेजस्विनी
नाम अनेक छैल छबीली ,मनु
स्वर्णिम इतिहास रचने वाली नारी शक्ति गरिमा गर्व।।
सन अठारह सौ बयालीस को
गंगाधर राव नेवालकर संग
शुभ मंगल विवाह जीवन खुशियों में
सराबोर।।
अठारह सौ तिरपन में पति
परमेश्वर पर काल की कुदृष्टि
साथ छोड़ दुनिया से विदा लिया
निःसंतान लक्ष्मी बालक दामोदर
को लिया गोद।।
2 आजादी का संघर्ष अंग्रेजों से युद्ध--
दत्तक पुत्र दामोदर के आते ही
अंग्रेजों की हड़प नीति झांसी
हड़पने की बिसात बिछाना
शुरू किया।।
झांसी के खजाने पर कब्जा कर
रानी झांसी को किले में कैद किया।।
लक्ष्मी के अंतर मन में गुलाम जीवन
मुक्ति की ज्वाला ने जन्म लिया।।
सन अठारह सौ सत्तावन में ओरछा
दतिया ने झांसी पर आक्रमण किया
झांसी के रन बांकुरों ने दतिया ओरछा
युद्ध का दमन कर झांसी की मंशा जाहिर को किया ।।
अंग्रेज चाहता झांसी को मिटाना
सम्भव नहीं था लक्ष्मीबाई के रहते
चाल चलता जाता दमन दंश
कुचक्र किया।।
सन अठारह सौ अट्ठावन में रानी
तात्या टोपे से मिल सलाह किया
ग्वालियर के निकट कोटा सराय
युद्ध मैदान युद्ध भयंकर शुरू हुआ।
रानी लक्ष्मी बाई वीरांगना दृढ़ता
वीरता युद्ध भूमि में झुकी नहीं
ना ही मानी हार ।।
पीठ पर बांध कर प्रिय पुत्र दामोदर
को निकल पड़ी अंग्रेजों से करने दो
दो हाथ।।
मर्दानों सी लड़ती मर्दानी जंग
अंग्रेजों कर दिया रक्त के शर्म में पानी
पानी।।
युद्ध भूमि में बिजली सी चमकती
रानी की तलवार ओलों से गिरते
अंग्रेजों कटते शीश बुंदेलों संग
हर भारत वासी ने बोला खूब
लड़ी मर्दानी ।।
इतिहास गवाह है रानी लक्ष्मीबाई
की त्याग बलिदान की गाथा का
युद्ध भूमि में नारी शक्ति भारत
की ज्वाला माँ भारती की स्वाभिमान
झांसी की रानी।।