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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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जेल

जेल

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हकीकत में जेल कहां होती है?

जहां मन की शांति नही होती है


स्वर्ण पिंजरा भी किस काम का,

जिसमे गुलामी की बू होती है


सच में जेल विचारों की होती है

जैसे विचार वैसी खुशियां होती है


हमारी अच्छी-बुरी सोच से ही,

जिंदगी हंसीन-गमगीन होती है


अच्छी विचार रखने से ही साखी,

नर्क में जन्नत की तस्वीर होती है


आज सोच का दायरा बदल गया है,

आधुनिकता से आदमी छल गया है,


अपूर्ण चीजों में हंसी कहां होती है

सच्ची खुशी तो परिवार में होती है


मन की जेल यहां सबसे बुरी होती है

इसमें जिंदगी मौत से बदतर होती है


जिस जगह विचारों की स्वतंत्रता,

वो जगह ही सच मे जिंदा होती है


बाकी सब जगह तो जग में साखी,

मुर्दाघर की ही पहचान होती है!



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