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AVINASH KUMAR

Abstract

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AVINASH KUMAR

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भावनाओं को घेरती है

भावनाओं को घेरती है

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भावनाओं को घेरती हैं, सुप्त मन की कल्पनायें। 

चक्रवाती पीर मथती, जागती संवेदनाएं ।।


हो गये एकान्तवासी, दर्द मेरे घुट गये । 

साथ जो पल भर चले थे, मीत मेरे छूट गये । 

कारवाँ में हूँ अकेला, पथ नया दृढ़ हैं कदम ।

आस तो रचती रही मन, नित रंगीली अल्पनायें ।।


फूल तरु के झड़ गये सब, पात सारे जर्द हैं । 

धूप से है तप्त तन-मन, कामनायें सर्द हैं ।

चाँद तारे छुप गये आकाश में, मन जागता । 

ये अँधेरे घेरते मन, डस रही हैं कालिमायें ।।


तार स्मृति के जुड़े हैं, प्रेम मन को बाँधता ।

कामनाओं में तृषित मन, सिर्फ तुमको माँगता । 

तोड़ पाओगे न बंधन, तुम विवादों से घिरे । 

नयन में भरने लगी हैं, आँसुओं की लालिमायें ।।


भाग्य की अवमानना, कोई कहो कैसे करे । 

मात्र कठपुतली बने मन, नाचता रहता, डरे । 

जल रहा परिताप से मन, वेदना के ज्वाल में ।

बाँधती परिपाटियों से, प्रेम को ये श्रृंखलाएं।।


भावनाओं को घेरती हैं, सुप्त मन की कल्पनायें । 

चक्रवाती पीर मथती, जागती संवेदनाएं ।।



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