भावनाओं को घेरती है
भावनाओं को घेरती है
भावनाओं को घेरती हैं, सुप्त मन की कल्पनायें।
चक्रवाती पीर मथती, जागती संवेदनाएं ।।
हो गये एकान्तवासी, दर्द मेरे घुट गये ।
साथ जो पल भर चले थे, मीत मेरे छूट गये ।
कारवाँ में हूँ अकेला, पथ नया दृढ़ हैं कदम ।
आस तो रचती रही मन, नित रंगीली अल्पनायें ।।
फूल तरु के झड़ गये सब, पात सारे जर्द हैं ।
धूप से है तप्त तन-मन, कामनायें सर्द हैं ।
चाँद तारे छुप गये आकाश में, मन जागता ।
ये अँधेरे घेरते मन, डस रही हैं कालिमायें ।।
तार स्मृति के जुड़े हैं, प्रेम मन को बाँधता ।
कामनाओं में तृषित मन, सिर्फ तुमको माँगता ।
तोड़ पाओगे न बंधन, तुम विवादों से घिरे ।
नयन में भरने लगी हैं, आँसुओं की लालिमायें ।।
भाग्य की अवमानना, कोई कहो कैसे करे ।
मात्र कठपुतली बने मन, नाचता रहता, डरे ।
जल रहा परिताप से मन, वेदना के ज्वाल में ।
बाँधती परिपाटियों से, प्रेम को ये श्रृंखलाएं।।
भावनाओं को घेरती हैं, सुप्त मन की कल्पनायें ।
चक्रवाती पीर मथती, जागती संवेदनाएं ।।
