औलाद
औलाद
माता पिता के लिए औलाद तो औलाद होते हैं,
उनके आगमन की आहट पर खुशी से रोते हैं।
दोनों मिल तब न जाने कितने सपने संजोते हैं,
पल पल उसकी कल्पना में नींद चैन खोते हैं।
माता पिता के लिए औलाद तो औलाद होते हैं,
जैसे ही गर्भावस्था के नौ महीने पूरे हो जाते हैं
दोनों ही आतुर हो अपनी नींद चैन खो देते हैं।
आए औलाद जब धरा पर बलैया फट लेते हैं।
माता पिता के लिए औलाद तो औलाद होते हैं,
जी जान से उसकी परवरिश वो करने लगते हैं
उसकी खुशी देखने, जी जान दोनों लगा देते हैं
उसकी आंखें नम न हो ऐसी कोशिश करते हैं।
माता पिता के लिए औलाद तो औलाद होते हैं,
बेहतरीन शिक्षा दीक्षा देने में फिर लग जाते हैं।
पौष्टिक भोजन दे, हर मांग सदा पूरी करते हैं।
उच्च शिक्षा के लिए, दूर बाहर भी भेज देते हैं।
माता पिता के लिए औलाद तो औलाद होते हैं,
पल पल औलादों की खातिर जीते, बूढ़े होते हैं
वक्त पलटता, माता पिता उनपर निर्भर होते हैं।
जाने क्यों औलाद तब, कर्तव्य अपनी भूलते हैं
