बाॅडीशेमिंग
बाॅडीशेमिंग
क्या हुआ जो सांवली हूँ मैं,
गोरा रंग पसंद नहीं मुझको।
ठीक उसी तरह जिस तरह,
सादा दूध भाता नहीं मुझको।
क्या करूँ बत्तीस नम्बर पसंद आता नहीं,
मुझको नम्बरों में बयालीस बहुत पसंद है।
small साइज टॉप की मुझको दरकार नहीं,
extra large का सिम्बल बहुत पसंद है।
नहीं पसंद मुझको ढीला-ढाला कुर्ता तन पर,
जैसे बांस को पहनाया कोई कपड़ा उचक कर।
रौब तो जमता है हमारा तब ना जमाने भर पर,
जब कसे हुए लिबास में खड़े हो पाओ तन कर।
मोटी कहे कोई तो बेशक कहता रहे,
खाने से समझौता पसंद नहीं मुझको।
क्योंकि ज़ीरो साइज के चक्कर में,
माँ के हाथ का खाना ठुकराना पसंद नहीं मुझको।
क्या हुआ जो बैठने को थोड़ी जगह ज्यादा लेती हूँ,
सिमट कर बैठना भी तो पसंद नहीं मुझको।
हाँ, पर पैर अपनी चादर अनुसार फैलाती हूँ,
दूसरों के घरौंदों में दखल देना पसंद नहीं मुझको।
क्या हुआ जो थोड़े से स्ट्रेच मार्क्स उभर आए तन पर,
मातृत्व का सुख भी तो मैंने ही पाया है।
इस दोगले जमाने में कोई तो है ऐसा मेरा अपना,
जिससे जुड़ा मेरा अपना ही साया है।
आँखों के नीचे के काले घेरे खलते नहीं मुझको,
इन्हें मैंने जाने कितनी रातों को जागकर पाया है।
गा-गाकर लोरी रातों में सुलाया है मैंने जिसको,
उसको भी तो मेरा यही रंग-रूप ज्यादा भाया है।
