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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Abstract Romance Classics

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Abstract Romance Classics

जब तुम्हारी याद आयी

जब तुम्हारी याद आयी

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एक हल्की सी हवा ने प्यास कुछ ऐसी जगाई ...

टूटकर रोयी निगाहें जब तुम्हारी याद आई।।


साँझ की दहलीज पर कुछ, दीप खुलकर मुस्कुराये।

गीत खुशियों के हजारों, जुगनुओं ने गुनगुनाये।

रात भी फिर चाँद का मुख, देख चुपके से लजाई..

टूटकर रोयी निगाहें, जब तुम्हारी याद आई....।।


कल्पनायें हड़बड़ाकर प्रश्न लाखों खोल बैठीं।

और फिर सम्भावनाएँ छटपटाकर बोल बैठीं।

फिर सुबह ने रौशनी के हाथ से मेंहदी रचाई...

टूटकर रोयी..............।।


देख किस्मत की निठुरता, रात ने आँखें भिगोईं।

साथ में सखियाँ प्रकृति की, सिसकियाँ ले खूब रोईं।

फिर हृदय ने वेदना के साथ में, कर ली सगाई..

टूटकर रोयी निगाहें.........।।


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