जब तुम मेरी किताब बन गये
जब तुम मेरी किताब बन गये
जब तुम मेरी किताब बन गए,,
दुनियाँ के लिए लाजबाव बन गए!!
जो मिला तुमसे अनुभव , हम लिखते गये,,
तुम विचारोंको हम उकारते गये !!
लफ़्ज़ों से हमने फसाने लिखे,,,
किताबी शक्ल में वो ढल गए!!
कभी , क्षणिका बने , कभी तुम ग़ज़ल!!
कभी कविता बने , कभी तुम सजल!!
सराहा जहाँ ने हौसला अफजाई भी की,,,
तुम्हारी शक्ल पर दिखाई ना दी !!
लफ़्ज़ों सँग कटा मेरा तन्हा सफर
किताब ही दुनियाँ को दिखाई बस दी !!!
अब तुम कहाँ ,और हम हैं कहाँ
किताबों में है ,अपनी ही दास्तां
ना तन्हा ही हम ,ना अब हैं उदास
आ गये हम वहाँ है सफलता जहाँ
आ गये हम वहाँ है सफलता जहाँ!!!