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M P

Abstract

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जायदाद

जायदाद

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पुरानी यादों को दीवारों पे सजा कर

हमने सोचा, देखें होता है क्या असर


तबसे एक एक लम्हा गुजरा है कुछ ऐसे

हर पल में सदियों का सफर हो जैसे।


कोई तस्वीर बुला के अपने पास बिठा लेती है

तो कोई अहसासों के मौसम को हवा देती है।


किसी में घर के आँगन की क्यारी है

तो कहीं जश्न की तैयारी है।


और वो, जो है हमारी पहली मुलाकात की गवाह

बिन बोले करती है बहुत कुछ बयां।


 लोग करते होंगे ज़मीन पर जागीरदारी

 अपनी तो जायदाद है ये दीवार हमारी।


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