ख्वाहिशे
ख्वाहिशे
कुछ पूरी हुईं, कुछ अधूरी रही
कुछ बनाये मुझ से कुछ दूरी रहीं
पर कम न हुईं बढ़ती रहीं।
कुछ मिलीं तो देर से
कुछ देर से भी न मिल सकीं
कुछ हालातों के परवान सी चढ़ती रहीं।
कुछ साफ़ थी उजली धूप सी
कुछ तीरगी में गुम रहीं
कुछ बस किस्मतों से लड़ती रहीं
मैं हूँ तो वो हैं या उनके होने से हूँ मैं
'मेरी ख्वाहिशे' मेरे वजूद को
लम्हा लम्हा गढ़ती रहीं।..
पर कम न हुईं बढ़ती रहीं।
...पर कम न हुईं बढ़ती रहीं।