जाता साल
जाता साल
ओ जाते साल बता मुझ को,
तूने भी क्या क्या देखा हैं,
हर महीने की है आप बीती,
क्या इन का लेखा जोखा है।।
पिछले साल की भांति ही,
कोविड ने तुझ को खूब छला,
क्या वसंत क्या ग्रीष्म ऋतु ,
ये संकट ना अब तक है टला।।
जब आगमन था हुआ तुम्हारा,
लगा प्रभु ने अब संकट टारा,
नई सुबह और नई धूप थी,
कोविड का संकट था हारा।।
दिन बीते और माह गए कुछ,
तुम भी बीता भूल गए कुछ,
अनुशाशन की लक्ष्मण रेखा को,
इक्षा की वैदेही ने ना माना
महामारी को मिल गया मौका,
तब त्राहिमाम करता था जमाना,
प्राणवायु को लोग तरसते,
हर गली मिले कुछ लोग सिसकते,
जाने कितने अपनों को खोया,
दिल टूटा कितनी बार और रोया।।
तुमने देखा सत्ता को झुकते,
आंदोलन की तपिश बड़ी थी,
नेता जी के घड़ियाली आँसू,
पर जनता बस अब जिद पे अड़ी थी,
तुमने ही देखा प्रगति चक्र को,
रुकते और फिर चलते हुए,
रौनक बाजारों में थी लौटी,
फिर आशा का सूरज ढलते हुए।।
अब जाते हो तो आने वाले को,
इतना ये बस तुम कहते जाना,
चुनौतियां हैं अभी बहुत खड़ी,
ना पलकों को अपनी झपकाना,
धैर्य, साहस, आशा ही अब,
इस सफर के है पतवार हमारे,
नव वर्ष तू शुभ तब ही होगा,
जब तुझ में ये कोविड रावण हारे,
जब तुझ में ये कोविड रावण हारे।।
