जाने हुए अनजाने लेफ्टिनेंट
जाने हुए अनजाने लेफ्टिनेंट
वह किसी का बेटा
कमीशंड हुआ ,पोस्टिंग हुई
और अब
सबकुछ ठहर गया !
यूँ ठहरा हुआ वक़्त भागता ही नज़र आता है
पर मैं खुद से मजबूर
उसे अपनी मुट्ठियों में भींच लेती हूँ
आंसू कभी मुक्त
आँखें कभी बंजर -
देखते ही देखते सारे इंतज़ार ख़त्म
और - यादें उदासी थकान।
लोग अपने दर्द से निजात चाहते हैं
मैं अनदेखे दर्द को जीती हूँ
ढूंढती हूँ शून्य में उन दृश्यों को
जो पलभर पहले
नए ख़्वाबों के पंख लिए निकले थे
आत्मविश्वास की चाल
खुद पे नाज की मुस्कान
ओह कितनी मीठी सी मुस्कान थी
उन आँखों की !
अगली छुट्टी में
कितना कुछ करना था
सच तो है जाना
पर यूँ जाना ?
माँ कैसे मानेगी इसे
पहली छुट्टी में बेटे के हाथों
फरमाइश की फेहरिस्त देकर
खुद पर उसे भी तो इतराना था !
दोष किसका ?
उसका जिसने अपने बेटे को फ़ौज में भेजा
या अनंत दुश्मनी का
कोई उत्तर नहीं चाहिए मुझे
यह तो मेरे एकांत की बड़बड़ाहट है !
भारी भरकम कुछ भी बोलकर क्या होगा।
मेरे जाने हुए अनजाने लेफ्टिनेंट
क्या सम्मान दूंगी तुमको
बस मैंने तुम्हारी आँखों में थिरकती हँसी को
अपने गले लगाया है
और तुम्हारी माँ का सर सहलाया है
क्योंकि इसके सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास
कुछ भी नहीं