जागोऽऽ अब तो जागो……
जागोऽऽ अब तो जागो……
ले रही अँगड़ाई,
पूरब से है आई
रक्तिम कर लाई है
प्रथम संदेशा आई है
सूरज की अँगड़ाई है
धरती की अरुणाई है
जागोऽऽ अब तो जागो……
इठलाती वसुंधरा चली
हरियाली की छाया तले
सदियों से दु:ख झेले
ममता के सजे मेले
अब तो टूटे भव के बंधन
जुड़े प्रेम के बंधन
ली रेणुका ने अँगड़ाई है
जागोऽऽ अब तो जागो……
आया जमाना नया नया
नई-नई इसकी सुबह
उम्मीदों के दामन में
घायल हुआ यकीन
वैदिकता से भरा रहा
भरतवंश का देश
शौर्य सुहृद हरियाला शांति का
ऐसा ही है इसका परिवेश
देख इसे रत्नगर्भा हर्षाई
कहती जागोऽऽ अब तो जागो……
आये तुम गोदी में
निर्वस्त्र न कर डालो
माँ हूँ तुम सबकी
कुछ शर्म तो दिखाओ
सनातन धर्म को सुदृढ़ बनाओ
रहो भूखे मगर
इक-दूसरे को खुशियों से भर जाओ
प्रेम प्रीति त्याग की मूरत बन
जग में ब्रम्हदेश का नाम कर जाओ
जागोऽऽ अब तो जागो……
सदा पाठ पढ़ाया है
अपना स्वारथ भुलाया है
दूसरे की खातिर
प्राणों का जौहर कराया है
भगवा लाल पीले से
पन्थ शहीदों का कहलाया है
विश्वास श्रद्धा कर्म-धर्म देकर
तुम्हें सनातन मैनें बनाया है
लाज मेरी तुम सब रख लेना
तिरंगे की शान न घटने देना
प्राणों को प्राणों मे भर लेना
हँसकर तुम उसे दे देना
जागोऽऽ अब तो जागो……