स्वार्थ से परे हो जीवन अपना
स्वार्थ से परे हो जीवन अपना
स्वार्थ से परे हो जीवन अपना
पूरी धरती हो परिवार
घर आँगन में बच्चे खेले
हर सपना हो सकार
नहीं किसी से द्वेष हो किसी का
सबमें हो प्रेम अपार
केवल नारो में ही बातें ना हो
वसुधैव कुटुम्बकम हो जीवन आधार
वृक्ष ना खाए फल स्वयं का
नदी ना पीए नीर
बादल ना कभी नहाए जल में
ठंडक ना महसूस करे समीर
फिर क्यूँ तू तू मैं मैं करता रहता हे मानव
रख तू जरा जीवन में धीर
परहित ही उद्देश्य हो जीवन का
फिर क्या कभी मिटेगा तू
सोच समझकर बढने वाले
नहीं होते कभी जीवन में अधीर
नहीं होंगे दंगे फसाद और हो जाएगा झगड़ा खतम
जब बन जाएगी पूरी धरती वसुधैव कुटुम्बकम