कुल की लक्ष्मी
कुल की लक्ष्मी
आज माँ को मिली है खुशखबरी
ख़त्म हो गई है इंतज़ार की घड़ी
कोख़ में पालुंगी मैं उसकी नौ माह
हर पल करेगी ख़ुद से ज़्यादा परवाह
आनेवाला है कुलदीपक ख़ुश हैं घर परिवार
नाम करेगा कुल का रौशन जानेगा उसे संसार
पर ये क्या "कुलदीपक" ही क्यों "लक्ष्मी" क्यों नहीं?
लड़का ही बस चाहिए सबको!"लड़की" क्यों नहीं?
सबको चाह थी बेटे की बस माँ-पिता लिए थी मैं संतान
आयेगा वंश बढ़ाने वाला क्या मिला है ये वरदान?
क्या होगी "संतान" सबने सोचा ये जान लेते हैं
आधुनिक तकनीक का थोड़ा सहारा लेते हैं
पर ये क्या रिपोर्ट आते ही सबकी उड़ गई खुशियां
जहाँ जश्न का माहौल था वहां अब है मायूसिया
क्यों सबका सपना गया था टूट?
जैसे उनकी दुनिया गयी थी लूट
आशीर्वाद जो देती थी दादी उनका ताना सुनना पड़ेगा
"ये क्या हो गया"? कहती थी "अब कैसे वंश बढ़ेगा"?
रे बहू प्यारी! मेरी तू बात मेरी मान ले
नहीं माना तो बुरा होगा ये भी तय जान ले
नहीं चाहिये मुझको पोती,पोता ही नाम करेगा
कुल ही नहीं रहेगा जब तब कौन हमे जानेगा?
पर माँ ने भी किया था निश्चय सब कुछ सह जायेगी
साथ नहीं छोड़ेगी मेरा दुनिया दिखलाएगी
उसकी हिम्मत से मैं आज इस दुनिया में आयी
इस पिछड़ी सोच को बदलने की कसम मैंने खाई