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DR. RICHA SHARMA

Inspirational

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DR. RICHA SHARMA

Inspirational

अबॉर्शन

अबॉर्शन

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अबॉर्शन की सुनकर बात।

बदल गए थे मेरे हालात।।


मेरे भीतर पल रही नवजात।

कैसे होने दूँ आखिर ये वारदात।।


मेरा दिल हुआ बहुत भारी।

कोख में पल रही बेटी पुकारी।।


हे माँ! यह कोख है तुम्हारी।

क्या तुम्हें भी लग रही हूँ-

मैं मुसीबत भारी।।


तब गई मैं उस सच्चाई से पूरी तरह सहम।

अपनों के द्वारा कटुता से पाले हैं ये कैसे वहम।।


मुझ अकेली को ही करना है नन्ही-सी जान पर रहम।

अपनी वेदना, पीड़ा का स्वयं ही बनना है मलहम।।


ये सारी बातें एक ख्वाब बन कर ढह गई।

मेरे अपनों को कोई भी फ़र्क न पड़ा।।


मैं रोती, तड़पती, छटपटाती, बिलबिलाती रह गई।

अबॉर्शन कराकर मेरी कन्या भ्रूण मेरे हाथों में रह गई।।


मैं उस नवस्पंदन को टकटकी बांध देखती रह गई।

अबॉर्शन कर मेरी कोख मुझे केवल कचोटती रह गई।।



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