बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
अनुभव तो बीते जीवन का , आचरण में लाता कुशलता की चमक।
लाभ समाज को अनुभव का मिले , पर थोपना है बुढ़ापे की सनक।
कुछ गलत-सही ऊँचा-नीचा, हम जीवन में कर जाते हैं।
प्रयास और परिस्थितिवश हम,मृदु तिक्त स्वाद चख जाते हैं।
हों सफल चाहे हम असफल हों, कुछ अनुभव सदा ही पाते हैं।
अच्छे को दोहराते रहते हैं, पर हम गलती फिर न दोहराते हैं।
असफलता और सफलता पा , सीख जाते हैं हम एक नया सबक।
अनुभव तो बीते जीवन का .........................
गतिशील सतत रहता है समय, स्थिर ये कभी न रहता है।
समयानुसार बदलें खुद को, यह समय-चक्र खुद कहता है।
स्थान और जल सरिता का ,प्रतिक्षण ही बदलता रहता है।
इक नदी में दो बार प्रवेश नहीं होता, दर्शन सिद्धांत ये कहता है।
कर न सकें बदलाव समय संग , समझो मस्तिष्क गया है थक।
अनुभव तो बीते जीवन का..........................…......
नूतन पीढ़ी इस अनुभव से जब, निस्वार्थ भाव कल्याण करे।
समावेश शुभता का करे और ,सारी त्रुटियों का त्याग करे।
पहली पीढ़ी बस जिद न करें , परिवर्तन को स्वीकार करे
अंतर पीढ़ी का भी ध्यान धरे ,जो करे वह सोच-विचार करे।
परिणाम सदा होंगे सुखकर ,दो युगों की होगी इनमें महक।
अनुभव तो बीते जीवन का...........................
