अनमोल ज़िन्दगी
अनमोल ज़िन्दगी
बड़े भाग मानुष तन पावा..
खेल जिनहि मम् सहज गवांवा..
बड़ी अनमोल है तेरी ज़िन्दगी
रहती साथ बनकर तेरी संगिनी
खेल समझ मत खेलो इसे
जीवन से तुम हार जाओगे
हाँथ मलकर रोते फिरोगे
जब तुम मन्ज़िल नहीं पाओगे..!
ज़िन्दगी फूल भी है
काँटों से भी होती भरी
कालिख़ पोत मत इसपर
बना इसे घास-सी हरी..!
तेरी ज़िन्दगी एक नायाब तोहफ़ा
व्यर्थ मत कर इसे
साँसे चल रही जो तेरी
इसे ख़ुदा की नेमत समझ..!
माना कि, जीवन में संघर्ष है बहुत
झेलकर तुम इसे हँसकर आगे बढ़ो
क़ामयाबी कदम चूमेगी जहाँ
देख सामनें तेरे मन्ज़िल है खड़ी..!
