इच्छित जी आर्य

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इच्छित जी आर्य

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जाग उठो महावीरों

जाग उठो महावीरों

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कल्पना के शांति-समंदर की थाह लगाते

भारत के महावीरों अब जाग उठो,

ब्रह्मास्त्र चलाने का वक़्त आया है !

जीवन हो रहा कलुषित-परास्त

अर्जुन तेरे गांडीव के बाणों में

क्यों अब तक नहीं रक्त समाया है ?


तप के छन्दों से श्रेष्ठ अलंकारों को

जो तूने श्लाघ्य किया

क्यों विनाश के तांडव बीच

विचार-पाश स्तंभों पर आरब्ध नहीं चढ़ाया है ?

सफल समाज के सबल वीरों

एक वाक़युद्ध ही सजग छेड़ दो

जो जीवन में और अर्थों का समर रम नहीं पाया है !


एक-एक शब्द बाण बनेगा जो पिपासा-बुझी नोक हो 

भले सामने राजनीति के स्वांग हों

या सुरक्षा का कातर कैसा भी विचार और.. अमोघ हो !

अब युद्ध एक विध्वंसकारी ही अवश्यम्भावी... 

संहार चाहे जो भी रूप लेकर आया हो

विनाश करो.. नाश के सताते विचारों का सकल सफाया हो !


गवाह इतिहास जवाब माँग रहा तुमसे

क्या हो वंशज उन मर्दानों के ही 

माँ के अभिमान पर शीश जिन्होंने स्वयमेव काट चढ़ाया है ?

देश को अखण्डता पर सब मिल समृद्ध करो,

माँ भारती के सपूतों

दूध का कर्ज़ अब अपनी कीमत माँगने को आया है !


सोये महावीरों सब जागो, अब देश जागृति का वक़्त आया है

निर्लज्ज भौंकते कुत्तों सा जीवन जीने में 

क्या नहीं जरा लज्जा ने सताया है ?

गुमनाम रह जाने की तबीयत से उबरो

यही कर्म लगाकर जीवन कमाने को तू आया है

उद्धार मासूमों का हो,

प्रतिदिन जिनका आतंक की चोटिल छाया है !

भारत के महावीरों अब जाग उठो... ...


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