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Dr J P Baghel

Abstract

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Dr J P Baghel

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जाग रे ! मनुंआ

जाग रे ! मनुंआ

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अब बीत रही है रात, जाग रे ! मनुआ

मीठी-मीठी ये नींद, त्याग रे ! मनुआ।


सुन गीत भोर के लगे पखेरू गाने

पूरब से नभ में लगी लालिमा छाने।


उठ देख दूर अंधियारा भाग रहा है 

जग जा मनुआ तू भी, जग जाग रहा है।


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