जादुई चिराग
जादुई चिराग
सबके भीतर छिपा जादुई चराग है
सब कहते उसको मनरूपी नाग है
जो पकड़ लेता इसका फन यार है
वो ही करता दुनिया मे चमत्कार है
ज्ञानी कहते,यह बात बार-बार है
मन वश करो,सुंदर होगा संसार है
सबके भीतर छिपा जादुई चराग है
मनशक्ति से बड़ा न कोई हथियार है
एक शिला को पल में तोड़ सकते है,
यदि मन पर नियंत्रण हो बेसुमार है
मन से तेज नहीं बहती हवा-बयार है
यह मन सरल कार्य से करता प्यार है
इस कारण बुराई की ओर जाने को,
यह मन जल्दी से हो जाता तैयार है
क्योंकि अच्छाई में होता श्रम तार है
ओर मन अपनी आदत से लाचार है
मन पर लगाम लगा ले,तू साखी
और चराग जिन्न पा ले,तू साखी
जो रगड़ता यह जादुई चराग है
मिलता,उसे मनवांछित उपहार है
जादुई चराग को बाहर मत ढूंढिए,
भीतर छिपा खजाने का संसार है
जैसे चाहिए,वैसा जादुई चराग है
वो तो वैसा ही करेगा व्यवहार है
जो मांगता बुराई का चराग है
उसका मन देता वैसा साथ है
जो मांगता अच्छाई बार-बार है
उसका मन देता वैसा चराग है
सबके भीतर छिपा जादुई चराग है
सब कहते उसको मनरूपी नाग है
जो बजाता जैसी बींद का सुरताल है
मनरूपी नाग करता है,वैसा नाच है।