इतना कुछ
इतना कुछ
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जैसे सागर चाँद से पूर्णिमा की रात को कहता
सब कुछ है, इतना कुछ कहना है मुझको
जैसे गर्मी की धूप में बर्फ पिघलती चट्टानों से
घंटों करती है बातें, इतना कुछ कहना है मुझको
जैसे उमस भरी रात में एक झोंका हवा का
कहता है बातें, इतना कुछ कहना है मुझको
जैसे सुबह के सन्नाटे को चूम के सूरज की
किरणें करती है बातें, इतना कुछ कहना है मझको
जैसे किसी मासूम से एक बर्फ का गोला
करता है बातें कितनी, इतना कुछ कहना है मुझको
जैसे कोई मुस्कान करती है रूठे मन से
कितनी बातें, इतना कुछ कहना है मुझको
इतना कुछ कहना है मुझको।