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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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इसी तर्ज पर !

इसी तर्ज पर !

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कभी अर्श पर ,

कभी फर्श पर ।

जीवन चलता ,

इसी तर्ज पर ।।


कभी आह बन ,

ठहर - ठहर कर।

कभी चाह बन ,

संवर संवर कर ।।


कभी स्वर्ग बन ,

कभी नरक बन।

जीवन चलता ,

इसी तर्ज पर ।।


कभी चिता बन ,

अग्नि सेज पर।

कभी नेह बन ,

पुष्प सेज पर।।


कभी भिगो कर ,

कभी चुभो कर।

जीवन चलता ,

इसी तर्ज पर।।


कभी वायरस मदिरा लेकर ,

कभी परास्त हौसले लेकर।

कभी ठगी सी , दबी - दबी सी ,

कही - अनकही बातें लेकर ।।


अल्प ज्ञान पर ,

छुद्र मान पर।

जीवन चलता ,

इसी तर्ज पर ।।



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