इश्क़ के धागों में बंधी आना
इश्क़ के धागों में बंधी आना
इश्क़ के धागों में बंधी आना,
कुछ इस तरह तुम दिल में उतरती जाना…
आग़ोश में ले लूँ हौले से पास आना,
प्यार दो चार गालों पे बरसाती जाना…
तरन्नुम-ए-साज़-ए-धड़कन मेरी नचती आना,
घुँघरू बन पोशीदा हर पीड़ा करती जाना…
छेड़ तार उँगलियों से कलेजे के हलचल मचाना,
रम कर साँसों में मेरी अरमान चुराती जाना…
सख़्त हो सकती हैं राहें इश्क़ की,
पग पग डगर पर मुद्दयी बढ़ती जाना…
उकेरे जो मोती-ए-तिश्नगी मेरे दिल-ओ-दीवार,
माला-वा-मोती अंगीकार खुदी करती जाना…
मेरी लज़्ज़त का स्वाद अपनी जुबां बिठाये,
मीठी यादों की परवान चढ़ती जाना…
हूँ रंगरेज़ तुम्हारी चाहतों की बुनियाद का,
रंग में मेरे रंगती जाना…
दबे पाँव चुप-चाप आना,
तज्जली-ए-सुकूँ-ए-हुस्न अँखियन जलाती जाना…
पलकों पर रत्ती भर आकाश बिछा कर,
सागर सा गहरा सैलाब देती जाना…
कोशिश तो करना की आके ना जाने पाओ,
जाओ तो साथ अक्स मेरा लेती जाना…
कब तक थमती साँसों को रफ़्तार देगा तेरा ‘हम्द’,
हाथ रखना मुझ पर और संगी थमती जाना….