इश्क-ए-किताब
इश्क-ए-किताब
इश्क-ए-किताब ठहरने को है बेताब,
ख्वाहिशें ख्यालों के पूछती है ख्वाब,
जूनुन का क्या है वो तो रूकेगी नहीं,
पढ़ लूं तुझे, तुम दे दो न जवाब।
कर चुकी है मुझे ये बेनकाब,
गुरूर रहा नहीं जब तू नहीं साथ,
लोग कहते हैं अब कौन पढ़ता है,
मैं कहूंँ तो कहूँ तुझे इश्क लाजवाब।
आसान नहीं प्रेम तेरा,
तुने सिखाया जीने का तरीका बेहिसाब,
पुरा कर रही हो अबतक हर ख्वाब,
सुकून वाली जिंदगी हो, तुम खूबसूरत किताब।

