इश्क़ और समाज
इश्क़ और समाज
हमें हुआ इश्क़ और समाज ने गुफ़्तगू कर हमारी
हमें मशहूर कर दिया
दिमाग ने कहा मान जा बर्बाद न कर दे इश्क़
और समाज क्या कहेगा ?
दिल ने कहा रोक मत खुद को
कर ले आबाद करके इश्क़
और समाज कौन से जिंदगी के
हर मोड़ पर तेरे साथ रहेगा ?
हम मर जाए या बिछड़ जाए करके इश्क़
और समाज ये दास्तां याद रखेगा हम ऐसा करेंगे इश्क़
जिंदगी खुशनुमा होने लगी दर्द में भी मुस्कुराने लगी
पहली बार जिंदगी जिंदगी लगने लगी करके इश्क़
और समाज में अब चुभती चर्चाएं होने लगी
सबको हो जाता है ये इश्क़
और समाज खुद पर कुछ नहीं बस
नज़रें और ताने कभी सामने पीछे
हम पर कसने लगी
कभी इंतजार में कभी तकरार में सिलसिला
बढ़ता गया बढ़ता गया दिन-ब-दिन इश्क़
और समाज में मूर्ख लोगों की कमी नहीं पर ज्ञानी भी है
बिना दहेज लिए दिए हो गई हमारी शादी की
घर में तैयारियाँ सुनकर कि हमने किया है इश्क़
और समाज ने अब जाति धर्म के
साथ दहेज की भी बात बनाई।
झूठा नहीं किया था हमारा इश्क़
और समाज में रहकर रीति भी मिलकर
निभाई साथ ही की खूब मिलकर
पढाई मुश्किले भी जमकर आई।
अब हुआ था उन्हें आई.ए. एस से इश्क़
और समाज में कुछ वर्षों बाद हुई हमारी वाह ! वाही !
जीत गया हमारा इश्क़ और समाज से
हमने भेदभाव मिटाने वाली रीति अपनाई।