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Richa Baijal

Romance

3  

Richa Baijal

Romance

इश्क और समाज

इश्क और समाज

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तेरी बातों में अब हम खोने लगे हैं

इश्क के परवाने होने लगे हैं।

उड़ती हैं जब ज़ुल्फ़ें तेरी

परिंदे भी काफिर होने लगे हैं,

आँखों में मासूमियत और जूनून है

बस तेरी बाँहों में अब मुझे सुकून है,

सांसों की थिरकन पागल कर देती है

तेरे होठों की कम्पन इश्क भर देती है।


वो मेरी होकर मुझसे ही छुपना तेरा

आगोश में होकर पलकों का मिलना तेरा,

मेरी शर्ट के बटन से खेलना तेरा

तेरी उँगलियों का मेरे जिस्म में घुलना'रिया ',

वो गर्म लबों के मीठे चुम्बन

और तेरी वफ़ा का सबब,

तुझे महसूस करने लगा हूँ

मैं सबसे कहता हूँ कि मैं इश्क करने लगा हूँ।


ज़हर कर देती है जुदाई तेरी

और रंग भर देती है मोहब्बत तेरी,

मैं अब तेरे अक्स में ढलने लगा हूँ

ले फिर से सुन , मैं तुमसे इश्क करने लगा हूँ।


वो मेरी बाँहों में बेफिक्री से सिमटी तुम

तुम्हारे जिस्म को अपनी उँगलियों से संवारता मैं,

तुम्हारी पलकों से आंसुओं का गिरना

और मैं तुम्हे भुला दूँ ऐसा इकरार करतीं तुम,

क्या आज इसे वफ़ा कह दूँ ?

क्यूंकि मेरी बाँहों में समर्पित हो तुम ,

या समाज को समझने की कोशिश करूँ फिर से

क्यूंकि ज़िक्र हुआ है तुम्हारी शादी का एक बार फिर से।


क्यों बिखर जाती हो तुम

जब समाज में शादी की बात होती है

क्यों नहीं अपना पाती तुम मुझे,

जब ज़िन्दगी भर के साथ की बात होती है।


माना समाज है , हम हैं ..तुम हो

लेकिन मेरी जाना !

हमारी ज़िन्दगी का फ़साना ' इश्क ' है

और इश्क की कहानी में शामिल तुम

तुम्हारा हूँ हर पल मैं

कि मेरी ज़िंदगानी बस तुम।


मना लेंगे एक दिन सबको

वो जो कहते हैं 'अय्याशी' "इश्क " को,

समाज की सोच बदल जाती है

जब माशूका गृहिणी हो जाती है,

है परिवर्तन को समझ सकने की समझ उनमें

जो कहते हैं कि इश्क है पतन 'पगले' !

शहनाई तेरे आंगन में बजवायेंगे

हम तुझे दुल्हन बना कर घर लाएंगे।


इश्क है , मुमकिन कर के दिखाएंगे ,

हम अपना समाज खुद ही फिर से बनाएंगे।

डर मत ! हौसला तो रख !

हम इश्क को मुमकिन कर के बताएँगे।।



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