इंसानियत जगाने चला हूँ मैं..!
इंसानियत जगाने चला हूँ मैं..!
अंधेरों में
चिराग़,
जलाने चला हूँ
मैं,!
नफ़रतों को
दुनियाँ
से,
मिटाने चला हूँ
मैं,!
जाति-धर्म,मज़हब-सम्प्रदाय
से ऊपर उठकर
इंसानों में
इंसानियत
जगाने चला हूँ
मैं,!
अन्नदाता ही ईश्वर
हैं,
हम सबको ये
बताने,
चला हूँ
मैं,!
लोगों में
उच-नीच,छुआ-छूत का
भेद-भाव मिटाने
चला हूँ
मैं,!
सबको गंगा जैसी
पवित्र बनने
चला हूँ मैं,!
अंधेरों में
चिराग़,
जलाने चला हूँ
मैं,!
नफ़रतों को
दुनियाँ
से,
मिटाने चला हूँ
मैं..!