इंसान इंसान का बैरी
इंसान इंसान का बैरी
जब इंसान पैदा हुआ होगा,
शायद ही कोई धर्म होगा,
सब एक से होंंगें,
बस खाना पीना और सोना ही,
दिन चर्या होगी,
लेकिन एक अंतर अवश्य होगा,
हर इंसान की,
शरीर की ताकत,
वो हर किसी में अलग अलग होगी।
जो अधिक ताकतवर,
वो अधिक अच्छा खाता होगा,
अधिक ठीक ढंग सेे रहता होगा,
कुछ लोगों केे मामलों में,
हस्तक्षेप करता होगा,
किसी की मदद करता होगा,
जिसकी मदद करता होगाा,
वो उसका मुुुुुरीद बन जाता होगा,
यहां से समुदाय बना होगा।
फिर अलग अलग समुुुुुुदायों में,
एक दुसरे को पछाड़ने की,
होड़़ लगी होगी,
यहां से प्रतिस्पर्धा शुरू हुई होगी।
जो अधिक ताकतवर,
उसको ताकत का नशा हुुुआ होगा,
<p>अपनी ताकत को कायम रखने केे लिए,
अलग अलग हथकंडे,
अपनाए होंगे,
कुछ तो उचित होंंगे,
और कुछ अनुुुचित होंंगें।
यहां से,
एक दूसरे को,
नीचा दिखाने की दौड़़,
शुरू हुई होगी,
और वो आज तक चल रही।
इसनेे इंसान को इंसान का,
बैरी बना दिया,
बात यहां तक आ गई,
इस चक्र में,
वो दुसरे को नष्ट करनेे सेे भी,
नहीं चुकता।
काश! कुछ ऐसा होता,
भगवान समझदारी दिखाता,
हर इंसान को,
एक सा रखताा,
न कमजोर,
न ताकतवर।
तो फिर ये झंंझट खत्म हो जाता,
कोई प्रतिस्पर्धा भी नहीं होती,
सारा बैर विरोध भी,
धरा का धरा रह जाता।