इंसान होने दो
इंसान होने दो
सोचता हूँ बन जाऊँ एक इंसान
सुन मुझसे यह हुआ पड़ोस मेरा बड़ा परेशान
मैं कुछ समझ न पाया पर समझाया
लड़कर कुत्तों साड़ों की भाँति
आखिर मिला क्या न मोह न माया
इंसान हैं इंसान की कद्र करेंगें
जहाँ दर्द मर्ज हो कर आगे देंगें
सजेगा परिवेश अपना इन्द्र की सभा सा
सुर में तभी सब बिलबिलाए
इंसान होना नही इतना आसां।।
खामोश हो उस भीड़ से लौटा
हो इंसान खुद को लग रहा था बहुत छोटा
है इतना जब मुश्किल
इंसान का इंसान हीं होना
फिर तो है यह मतवाले हाथी की सेना
सच है, कंक्रीट के जंगल में जो बढे उगे
बस शक्ल इंसान की
कई रूप मेें जंगली से वे फूले फले
पर हर तर्क बकवास बेनामी सा
क्योंकि भिन भिन कर सब फिर भिनभिनाए
इंसान होना नही इतना आसां।।
अरे सब कितना बदल गया
इंसान इंसान का अरि हो रह गया
वक्त के चोट से बच संभल
सचेत हो बचने का न होगा कोई संबल
इंसान है इंसान से मेल रख
चल इंसान हित का शहद तो चख
नफरत किसी प्रति दिल मेें न भरने दे
इंसान को इंसान तो होने दे
इंसान को इंसान तो होने दे।।