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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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इनै सुना

इनै सुना

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इने सुना

रे दीदी भैजी

तुम चन्द लोग

लालची हो,

पहाड़ी नहीं,

पूरे ढोंगी हो।


तुम तब

देशी हो जाते हो

जब अपने हार त्योहार

बिसरा के,


सजने, संवरने के लिए,

धर्म की आड़ में

देशी त्योहार मनाते हो।


तुम वही हो जो

बहानो में गांव छोड़

शहर को दौड़े आते हो।


ललचाती है तुम्हारी जिकुड़ी

देसी ढंग अपनाने को

ख़ुद को बहुत सभ्य दिखलाने को।


बड़ी शान से

जब आधी बारात ले

वाग दान करते हो,

न, न सगाई करते हो

धीमे से देशी लोकाचार सुनाते हो।


दहेज नहीं लेना मगर

अपनी ही बेटी का

घर तो जी आपने ही जमाना है

ये ही तो सुनाते हो।


जब यहां अखबारों में

छपता है कि

तड़प तड़प कर

बेटियां मर रहीं हैं पहाड़ी,

तुम फिर भी औकात दिखते हो।


घड़ियाली आँसू गिरा कर

बिरादरी में फिर भी

धनी असामी खोजवाते हो।


बेटा अफसर है मेरा

घूमा फिरा के दूसरों से कहाते हो।

बड़े बेशर्म हो

मौत पर भी इश्तहार बनाते हो।


सच कहूँ

कहीं भी देशी होना

गुनाह नहीं है

पर तुम मुठ्ठी भर

झूठे पहाड़ी

मतलब के लिए,

झूठी प्रतिष्ठा और

मान के लिए

पल भर में

"बड़े" देसी हो जाते हो

पहाड़ को शर्मिंदा करते हो।



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