इल्तज़ा
इल्तज़ा
चाँद को द्वार से,
यूँ ही पलट जाने दो।
बादलो का घूंघट यूँ ही,
ज़रा उलट जाने दो।।
उम्र सारी पड़ी हैं,
शोर मचाने के लिए।
आज की रात तो,
यूँ ही कट जाने दो।।
कितना ठंडा है,
हाथ शबनम का,
कितना गीला है,
आसमां गम का।
जाने वाले,
ज़रा इधर देख,
कैसा चाँद निकला,
है पूनम का।।
आज आएँगे वो, बाती को,
ज़रा कुछ कम कर दो।
चंद चल रहा हैं तेज़,
उसे वही थम कर दो।।
बातें हैं काफी और रात छोटी,
आँखों को आँखों में।
एहसास को जज़्बात में,
रम कर दो।।
मुश्किल से मोहलत मिली है,
आज रूहों को धुल जाने दो।
बीत रही हैं रात चार पहर,
बात कुछ हो जाने दो।।
इल्तज़ा मेरी हैं ए रात कि,
यार मेरा आया हैं,
वक़्त को दे धोखा आज,
मुझे सनम में मिल जाने दो।।
चाँद को द्वार से,
यूँ ही पलट जाने दो।
बादलो का घूँघट,
यूँ ही ज़रा उलट जाने दो।।
उम्र सारी पड़ी है,
शोर मचाने के लिए।
आज की रात को,
यूँ ही कट जाने दो।।
