Traveller, poet, father and a professional
चाँद को द्वार से, यूँ ही पलट जाने दो...! चाँद को द्वार से, यूँ ही पलट जाने दो...!
दिन जुदा जुदा, रात इतनी खामोश क्यों हैं, नशेमन है फ़िज़ा, फिर ये दरख्त बेहोश क्यों है । दिन जुदा जुदा, रात इतनी खामोश क्यों हैं, नशेमन है फ़िज़ा, फिर ये दरख्त बेहोश क्...