इक रिश्ता बना डाला
इक रिश्ता बना डाला
किसी के संग इक रिश्ता बना डाला
मुहब्बत का मैंनें लम्हा बना डाला
मुहब्बत की रवानी दी उसे इतनी
वफ़ा का रिश्ता वो गहरा बना डाला
जो ख़्वाबों में मेरी आता रहा हर पल
कागज़ पे आज वो चेहरा बना डाला
न टूटेगा अभी भी नफ़रतों से वो
वफ़ाओ का दिल में जाला बना डाला
टूटी है दीवारें वो नफ़रतों की ही
ख़ुदा नें प्यार का दरिया बना डाला
ख़ुदा का शुक्र जिसका तल्ख़ लहज़ा था
मुहब्बत से भरा लहज़ा बना डाला
ग़मों के दिन यहां सब ढ़ल गये देखो
ख़ुदा नें रहमत का साया बना डाला
न टूटेगा कभी आज़म अदावत से
मुहब्बत का ही वो घेरा बना डाला।
