इक दूजे बिन अधूरे हम
इक दूजे बिन अधूरे हम
तुम अथाह प्रेम के सागर हो प्रिय,
मैं स्नेह,त्याग की धारा
एक-दूजे बिना अधुरे हैं हम
कब होगा मिलन हमारा।
तुम शान्त हो सागर से
तो मैं हूँ तुम्हारा किनारा
तुम प्रेम उपवन में भंवरे से
मैं सुमन बगीचा प्यारा।
तुम मेघों से भरे अंबर हो
मैं धरा बहुत जो प्यासी
एक छोर पे आजा हम भी मिलें
चल दूर करें ये उदासी।
तू आफताब मैं माहताब
क्यों हम तुम मिल न पाए
आ तोड़ दें कुदरत के नियमों को
और एक साथ निकल आए।

