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अनिल कुमार निश्छल

Drama

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अनिल कुमार निश्छल

Drama

ईर्ष्या

ईर्ष्या

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देख पड़ोसी की उन्नति हम सब जाने क्यों घबराते हैं;

धीरे-धीरे ही सही अंदर से ही अक्सर कुढ़ते जाते हैं।


कैसे गिरे उक्त शख़्स धरातल में हर पैतरे आजमाते हैं;

पुरजोर कोशिशें करते हम हरदम न कभी शरमाते हैं।


उत्तुंग शिखर कैसे मिल गया इसे सोच-सोच घबराते हैं;

करते न कोशिशें न मिन्नतें कभी ख़ुद को यूँ ही तड़पाते हैं।


आते जाते मुस्करा के मिलते हैं और मक्ख़न भी लगाते हैं;

पीठ पीछे ही हर कोई हर किसी पे छींटे कसते जाते हैं।।


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