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सोनी गुप्ता

Abstract

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सोनी गुप्ता

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हवा

हवा

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डाल- डाल 

लहराती हुई आई, 

पत्तों की 

खड़-खड़ताल बजी

सूरज की

मद्धम रोशनी संग, 

धरा में रंगी 

सुनहरी हवा चली

नैनों की

खिड़की से वो झांकें ,

यादों की जब 

कलियाँ खिली

ऊंचे शिखरों से 

जब हवा बही ,

आलिंगन 

अपनी बांहों का दे

इठलाती बलखाती

हवा चली I



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