...हूँ न
...हूँ न
मैं रुकती नहीं
धीरे-धीरे ही सही
चलती हूँ क्योंकि
बादल हूँ न...
हवाओं के परों पे
उड़ती ही जाती हूँ।
मैं कहती नहीं
कितना कुछ है
अन्तस की गहराई में
सागर हूँ न...
मन में तूफान लिए
चलती हूँ।
पल में खुशी हूँ
पल में ग़मज़दा
मैं अलहदा हूँ सबसे
इश्क हूँ न...
सबसे अलग
इसलिए रहती हूं।
किताबों को कितनी ही
दफ़ा पढ़ती हूँ
हर हर्फ में एक लफ्ज़
पगली हूँ न...
इसलिये बस
नाम तेरा पढ़ती हूँ।
काश हो जाये मयस्सर
सांसे खुशनुमा सी
ज़िन्दगी हूँ न...
बस सोते - जागते
जीने की सोचा करती हूं।