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Fahima Farooqui

Abstract

4.5  

Fahima Farooqui

Abstract

हुनर नही सीखा

हुनर नही सीखा

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क़दम क़दम चाल चलने का हुनर नहीं सीखा

पल पल रंग बदलने का हुनर नहीं सीखा।


मोहब्बत को जीया करते इबादत की तरह,

दुश्मन से भी नफ़रत का हुनर नहीं सीखा।


चोट खाते रहे दर्द सहते रहे मुस्कुराते रहे,

किसी को ज़ख़्म देने का हुनर नहीं सीखा।


जो मिल गया उसे मुकद्दर समझ  लिया,

छीन कर तिजोरी भरने का हुनर नहीं सीखा।


कोशिश हमेशा रही आगे निकलने की मगर,

किसी को गिरा के बढ़ने का हुनर नहीं सीखा।


हर सजदा मेरा है रब की रज़ा के लिए, 

ग़रज़ से सर झुकाने का हुनर नहीं सीखा।



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