■■ हत्यारे ■■
■■ हत्यारे ■■


चेहरों को गमछे के पीछे
छिपाकर ले जाया
जा रहा है उन्हें।
हाथों को बांधकर
मगर दिख रही हैं,
दो आंखें मैली सी।
रंज नहीं दिखती,
जिनमे जरा भी।
हाथ रँगे है उनके,
रिश्तों के लहू से।
ताज़ा दाग कह रहे हैं,
हत्या अभी-अभी हुई है
कत्ल हुआ है किसी के
विश्वास और प्रेम का।
क्यों बढ़ जाती है इतनी तृष्णा ?
लोग उतारू हो जाते हैं,
बहाने को किसी का खून !
अपने ही जैसे किसी,
दूसरे शरीर का।
और ठंडी पड़ जाती है,
मानवता
प्रेम की आंच भी कम
पड़ जाती है जिसके सामने !