हत्यारे
हत्यारे
दुनिया की हर गली-गली में
बसे हुए हैं हत्यारे
तेरे-मेरे मन के हर कोने-कोने में
छुपे हुए हैं हत्यारे
रूप अलग है
रंग अलग है
अपने-अपने सब कृत-कृति में
रमे हुए हैं हत्यारे
दुनिया की हर गली-गली में
बसे हुए हैं हत्यारे
तन पर देखो लगा है चंदन
पर,
मन में उसके भरा है क्रंदन
सोच-सोच में बसे हुए हैं हत्यारे
तब
चिर पटल की धरा पर सज्जित
तार-तार हुई नज़रें है लज्जित
वहशी यहाँ हर भावों के बने
हुए हैं हत्यारे
करूणा की करूणा जिसमें झुलसी है
ये विरह-वेदना क्या श्यामा तुलसी है
बस
अब ढोंग-ढोंग में कृष्ण रंग दिखे
पर
श्वेत रंग से रंगे हुए हैं हत्यारे
दुनिया की हर गली-गली में
बसे हुए हैं हत्यारे
