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Shikha Singh

Abstract

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Shikha Singh

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हत्यारे

हत्यारे

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दुनिया की हर गली-गली में

बसे हुए हैं हत्यारे

तेरे-मेरे मन के हर कोने-कोने में

छुपे हुए हैं हत्यारे

रूप अलग है

रंग अलग है

अपने-अपने सब कृत-कृति में

रमे हुए हैं हत्यारे

दुनिया की हर गली-गली में

बसे हुए हैं हत्यारे


तन पर देखो लगा है चंदन

पर,

मन में उसके भरा है क्रंदन

सोच-सोच में बसे हुए हैं हत्यारे

तब

चिर पटल की धरा पर सज्जित

तार-तार हुई नज़रें है लज्जित

वहशी यहाँ हर भावों के बने

हुए हैं हत्यारे


करूणा की करूणा जिसमें झुलसी है

ये विरह-वेदना क्या श्यामा तुलसी है

बस

अब ढोंग-ढोंग में कृष्ण रंग दिखे

पर

श्वेत रंग से रंगे हुए हैं हत्यारे

दुनिया की हर गली-गली में

बसे हुए हैं हत्यारे



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